MA Semester-1 Sociology paper-I - CLASSICAL SOCIOLOGICAL TRADITION - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।

उत्तर -

समाजशास्त्र
(Sociology)

मैक्स वैबर के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जोकि सामाजिक क्रिया का निर्वचनात्मक बोध करने का प्रयत्न करता है, जिससे कि इसकी (सामाजिक क्रिया) की गतिविधि तथा परिणामों की कारण सहित व्याख्या प्रस्तुत की जा सके) " "

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि मैक्स वैबर के समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु सामाजिक क्रिया है। लेकिन इस सम्बन्ध में, मैक्स वैबर के शब्दों में, “यह स्मरणीय है कि समाजशास्त्र किसी भी अर्थ में केवल 'सामाजिक क्रिया' के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है: हाँ, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रिया समाजशास्त्र का (कम-से-कम उस समाजशात्र का जिसे कि वैबर ने यहाँ विकसित किया है) केन्द्रीय अध्ययन विषय और इस समाजशास्त्र को एक विज्ञान की स्थिति प्रदान करने में निर्णायक (decide) कहा जा सकता है।" दूसरे शब्दों में, समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम केवल सामाजिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं, ऐसा समझना गलत होगा; हाँ, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रियाएँ समाजशास्त्र का केन्द्रीय अध्ययन विषय है, जोकि समाजशास्त्र को एक यथार्थ विज्ञान के स्तर तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होंगी।

यदि मैक्सवेबर की परिभाषा को फिर से दोहराया जाए तो हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया का निर्वाचनात्मक बोध करने का प्रयत्न करता है, अर्थात् मैक्स वेबर के, समाजशास्त्र -में सामाजिक क्रिया और अर्थपूर्ण बोध, ये दो पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं। ऊपर हम सामाजिक क्रिया के विषय में लिख आए हैं; अंह हमें 'निर्वचनात्मक बोध' के विषय में भी समझ लेना चाहिए। मैक्सवेबर इस बात पर बल देते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया के साधारण बोध से सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि यह अर्थपूर्ण बोध करने का प्रयत्न करता है। किसी भी घटना या परिस्थिति का 'अर्थ' दो प्रकार का हो सकता है।

(1) औसत अर्थ यह वह अर्थ होता है जोकि साधारणतः समाज के अधिकांश सदस्य लगाते हैं,
(2) यथार्थ अर्थ यह वह अर्थ होता है जोकि एक व्यक्ति परिस्थिति के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेने के पश्चात् तर्कसंगत आधार पर लगाता है।

इन दो प्रकार के अर्थ के भेद को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में बैठने जा रहा है। वह अपनी परीक्षा की तैयारी इस प्रकार करता है कि उसे अधिकतम अंक प्राप्त हो सकें। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसकी क्रियाएँ परीक्षा में आने वाले सम्भावित प्रश्न-पत्र, उनको बनाने वाले परीक्षक, पिछले वर्षों में पूछे गए प्रश्नों आदि से सम्बन्धित उन सामान्य अनुमानों पर आधारित होंगी जैसाकि अधिकांश विद्यार्थी लगाते हैं या जैसा कि अधिकांश व्यक्ति करते हैं। यह उक्त परीक्षा से सम्बन्धित परिस्थिति का सामान्य या औसत अर्थ है। इसके विपरीत, उसी परिस्थिति का यथार्थ अर्थ लगाना तब सम्भव होगा जब किसी विद्यार्थी को उस परीक्षा की प्रणाली, वास्तविक परीक्षक, सम्भावित पुस्तकें आदि के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी हो। परीक्षा में सफल अथवा असफल हो जाने पर विद्यार्थी अपने इस यथार्थ अर्थ का वास्तविक मूल्यांकन कर सकता है। इस यथार्थ अर्थ के आधार पर परीक्षार्थी एवं परीक्षक दोनों की ही क्रियाओं की ठीक-ठीक उचित विवेचना की जा सकती है।

मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्रियों को प्रत्येक सामाजिक घटना या क्रिया का इसी प्रकार यथार्थ अर्थ खोजने का प्रयत्न करना चाहिए। अतः यह स्पष्ट है कि मैक्स वेबर का समाजशास्त्र 'अर्थपूर्ण' इसलिए है कि-

(1) इसका संबंध सामाजिक क्रियाओं से है;
(2) इसकी पद्धति का उद्देश्य सामाजिक क्रिया की पूर्णतया तार्किक आधार पर करना है।

इन दी आधारभूत विशेषताओं के कारण ही समाजशास्त्रीय नियम वैज्ञानिक कहे जाते हैं।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक सामाजिक क्रिया का एक उद्देश्य और एक अर्थ होता है। यह दूसरे व्यक्तियों की क्रिया तथा उद्देश्यों द्वारा प्रभावित होता है। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं को उनके अर्थ के आधार पर उस रूप में अध्ययन करता है जिस रूप में वे सामाजिक क्रियाएँ दूसरों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित हों। इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र को अन्य प्राकृतिक विज्ञानों से पृथक् किया जा सकता है। प्राकृतिक विज्ञानों में घटनाओं के उद्देश्य अथवा अर्थ पर विचार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्राकृतिक घटनाएँ तो प्राकृतिक नियम के अनुसार आप से आप घटित होती हैं। परन्तु सामाजिक घटनाएँ तो व्यक्तियों की अन्तः क्रियाओं का परिणाम होती हैं। इसलिए समाजशास्त्र घटनाओं के उद्देश्य और अर्थ दोनों पर अपना अखण्ड ध्यान केन्द्रित करता है।

मैक्स वेबर के अनुसार, समाजशास्त्रीय पद्धति कारण सहित व्याख्या (causal explanation) तथा अर्थपूर्ण-बोध के बीच एक सन्तुलन स्थापित करने में सफल हुई है। इसके बिना सम्पूर्ण समाजशास्त्र का विज्ञान अवास्तविक हो जाएगा क्योंकि तथ्यों के कारण सहित सम्बन्ध का ज्ञान क्रियाओं के अर्थों को ठीक-ठीक जाने बिना सम्भव नहीं हो सकता। इसके कुछ भी विपरीत होने पर समाजशास्त्र केवल तथ्यों का अर्थहीन वर्णन मात्र रह जाएगा। दूसरे शब्दों में, समाजशास्त्रीय पद्धति का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के कारणों को ढूँढ़ निकालना है। परन्तु इन कारणों का पता हम तब तक नहीं लगा सकते जब तक हमें व्यक्ति की सामाजिक क्रियाओं का अर्थपूर्ण बोध न हो जाएगा। यह भी सच है कि सामाजिक क्रिया कोई आप से आप घटित होने वाली या प्राकृतिक घटना नहीं है; सामाजिक क्रिया तो दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं या व्यवहारों द्वारा प्रभावित तथा निर्धारित होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मैक्स वेबर के अनुसार व्यक्ति के द्वारा की गई उस क्रिया का, जोकि अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित व निर्धारित होती है, अर्थपूर्ण बोध करना और उस बोध के आधार पर सामाजिक कारणों को खोज निकालना समाजशास्त्रीय पद्धति का मुख्य लक्ष्य है

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि मैक्स वेबर का समाजशास्त्र दूसरे सामाजिक विज्ञानों से इस अर्थ में भिन्न है कि आपके समाजशास्त्र में व्यक्ति का (जो कि सामाजिक क्रिया को उत्पन्न करने वाला होता है) स्थान सर्वप्रमुख है। मैक्स वेबर के ही शब्दों में, “अर्थ-निरूपण करने वाला समाजशास्त्र व्यक्ति और उसकी क्रिया को आधारभूत इकाई या 'अणु' के रूप में विचार करता है। इस विज्ञान के क्षेत्र में व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण आचरण का एकमात्र वाहक है।" मैक्स वेबर का कथन है कि वैसे तो सामान्य रूप से समाजशास्त्र के लिए 'राज्य', 'समिति', 'सामन्तवाद' और इसी प्रकार की अन्य अवधारणाएँ कुछ विशेष प्रकार की मानवीय अन्तः क्रिया को व्यक्त करती हैं, फिर भी समाजशास्त्र का यह कार्य है कि वह इन अवधारणाओं को समझी जा सकने वाली क्रियाओं में बदल दे।

उपर्युक्त आधार पर मैक्स वेबर ने समाजशास्त्रीय नियम तथा प्राकृतिक विज्ञान के नियमों (laws) की व्याख्या की है। आपके अनुसार समाजशास्त्रीय नियमों और प्राकृतिक विज्ञान के नियमों में भेद है। प्राकृतिक विज्ञान के अन्तर्गत नियमों की खोज करना स्वयं एक साध्य (end) है, लेकिन समाजशास्त्र में ऐसा नहीं है। समाजशास्त्रीय नियमों का उद्देश्य सामाजिक व्यवहार को स्पष्टतः समझना और उसी आधार पर ऐतिहासिक घटनाओं के अन्तः सम्बन्धों की कारण सहित खोज करना है, जहाँ तक कि इन घटनाओं की गतिविधि और परिणाम या प्रकृति तथा कार्य का सम्पर्क है।

अपने समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए मैक्स वेबर सदैव प्रयत्नशील तथा जागरूक रहे। इस उद्देश्य से आपने कठोरतापूर्वक 'क्या है' को 'क्या होना चाहिए' से, प्रयोगसिद्ध (empirical) ज्ञान को भविष्य कथन (prophecy) से तथा सर्वत्र सत्य वैज्ञानिक विश्लेषण को मूल्यांकनात्मक निर्णय (value judgement) से बिलकुल अलग रखा है। मैक्स वेबर का दृढ़ विश्वास है कि यदि समाजशास्त्र या अन्य किसी भी सामाजिक विज्ञान को विज्ञान बनाना है, तो उसे दृढ़तापूर्वक केवल -

(1) अपने अध्ययन को 'क्या है' तक ही सीमित रखना चाहिए:
(2) गैर - आदर्शात्मक (non-normative) या प्रामाणिक आधार पर मानवीय सम्बन्धों के ऐतिहासिक उद्विकास के विशिष्ट तथा विभेदक (distinguishing) पक्षों का अध्ययन करना चाहिए;
(3) सामाजिक जीवन की बुनियादी गतिविधियों में पाई जाने वाली घटनाओं के क्रम तथा उसकी क्रियाशीलता एवं परिणामों को कारण सहित जानने का प्रयत्न करना चाहिए;
(4) विभिन्न सांस्कृतिक तत्त्वों की अन्तः क्रिया की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करनी चाहिए और (5) सर्वत्र सत्य वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिए मूल्यांकन निर्णयों से बचना चाहिए। उपर्युक्त यथार्थता तथा सुतथ्यता के आधार पर मैक्स वेबर अपने वैज्ञानिक समाजशास्त्र को यह प्रदर्शित करने का कार्य सौंपते हैं कि किस प्रकार एक सामाजिक घटना केवल एक परिणाम को ही जन्म देती है, दूसरे को नहीं; और किस प्रकार एक प्रकार की अवस्थाओं में एक घटना सदैव ही कुछ निश्चित परिणामों को उत्पन्न करेगी, दूसरे किसी प्रकार का परिणाम नहीं। इस प्रकार के विश्लेषणात्मक तथा अर्थपूर्ण अध्ययन तभी सम्भव हो सकते हैं, यदि वे मानवीय संस्कृति की विकासात्मक प्रक्रिया में व्यक्त होने वाली सामाजिक शक्तियों के सम्पूर्ण ज्ञान पर आधारित हों।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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